लोगन राम खिलौना जाना

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बाद, कुछ समर्थकों द्वारा अयोध्या की जनता को गद्दार कहकर दोषारोपण करना एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति है। इस प्रकार के आरोप और बातें न केवल लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ हैं, बल्कि समाज में विभाजन और कटुता भी पैदा करते हैं। आइए, संत कबीर दास के एक प्रसिद्ध दोहे के माध्यम से समझते हैं कि इस तरह की सोच क्यों गलत है और भगवान राम का असली महत्व क्या है।

लोगन राम खिलौना जाना।
राम न जाना राम का जाना॥

कबीर दास

अर्थ: “लोगों ने राम को खिलौना (साधारण वस्तु) समझ लिया है। उन्होंने राम को नहीं जाना, बल्कि केवल राम के नाम को जाना है।”

कबीर दास के इस दोहे का गहरा अर्थ है। उन्होंने बताया है कि लोग भगवान राम के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझते हैं। वे राम को केवल एक नाम या प्रतीक के रूप में जानते हैं, लेकिन राम के सच्चे अर्थ और महत्व को नहीं पहचानते।

अयोध्या की जनता को दोष देना अनुचित क्यों है:

  1. लोकतंत्र में स्वतंत्र चुनाव: लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपनी पसंद से वोट देने का अधिकार है। अयोध्या की जनता ने अपने विवेक और समझ से मतदान किया है। उन्हें गद्दार कहकर हम उनके इस अधिकार का अपमान कर रहे हैं।
  2. वोट देने के कई कारण: चुनाव में लोग विभिन्न कारणों से वोट देते हैं, जैसे विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि। केवल राम मंदिर निर्माण को ध्यान में रखकर वोट न देने का मतलब यह नहीं है कि वे राम का अनादर कर रहे हैं।
  3. सकारात्मक सोच और संवाद: हार-जीत राजनीति का हिस्सा है। चुनाव परिणाम के बाद हमें सकारात्मक सोच और संवाद की आवश्यकता है, न कि कटुता और आरोप-प्रत्यारोप की।

राम का असली महत्व:

भगवान राम का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। राम केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे नैतिकता और आदर्शों का प्रतीक हैं। राम के नाम को जानना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारना भी आवश्यक है।

संत कबीर दास ने भी इस दोहे में यही संदेश दिया है कि राम को केवल एक नाम या खिलौना समझकर उनके वास्तविक स्वरूप और शिक्षाओं को नकारना उचित नहीं है। राम का असली महत्व उनके आदर्शों और शिक्षाओं में है, जो हमें सही मार्ग दिखाते हैं।

निष्कर्ष:

अयोध्या की जनता को गद्दार कहना न केवल अनुचित है, बल्कि यह हमारी लोकतांत्रिक और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ भी है। हमें कबीर दास के इस दोहे से सीख लेनी चाहिए और समझना चाहिए कि भगवान राम का महत्व उनके नाम से अधिक उनकी शिक्षाओं और आदर्शों में है। हमें उनके आदर्शों पर चलकर समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।