कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया|| 
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को, 
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया|| 
किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं, 
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया || 
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त, 
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ||
By – SAHIR LUDHIANVI
पुस्तक : Kulliyat-e-Sahir Ludhianvi (पृष्ठ 417)रचनाकार : SAHIR LUDHIANVIप्रकाशन : Farid Book Depot (Pvt.) Ltd
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