A famous Hindi Shayari By Munawwar Rana, Rone Mein Ek Khatra Hai…
रोने में इक ख़तरा है,
तालाब नदी हो जाते हैं
हंसना भी आसान नहीं है,
लब ज़ख़्मी हो जाते हैं
Complete Ghazal
रोने में इक ख़तरा है, तालाब, नदी हो जाते हैं
हँसना भी आसान नहीं है, लब ज़ख़्मी हो जाते हैं
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखे सोचती हैं
पत्ते देहाती होते हैं, फल शहरी हो जाते हैं
गाँव के भोले-भाले वासी, आज तलक ये कहते हैं
हम तो न लेंगे जान किसी की, राम दुखी हो जाते हैं
सब से हंस कर मिलिए-जुलिए, लेकिन इतना ध्यान रहे
सबसे हंस कर मिलने वाले, रुसवा भी हो जाते हैं
अपनी अना को बेच के अक्सर लुक़मा-ए-तर की चाहत में
कैसे-कैसे सच्चे शायर दरबारी हो जाते हैं
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