A famous Ghazal By Akhtar Nazmi, Silsila Zakhm Zakhm Jaari Hai…
सिलसिला ज़ख़्म ज़ख़्म जारी है
ये ज़मीं दूर तक हमारी हैइस ज़मीं से अजब तअल्लुक़ है
ज़र्रे ज़र्रे से रिश्तेदारी हैमैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिस से यारी है उस से यारी हैनाव काग़ज़ की छोड़ दी मैं ने
अब समुंदर की ज़िम्मेदारी हैबेच डाला है दिन का हर लम्हा
रात थोड़ी बहुत हमारी हैरेत के घर तो बह गए लेकिन
बारिशों का ख़ुलूस जारी हैकोई ‘नज़्मी’ गुज़ार कर देखे
मैं ने जो ज़िंदगी गुज़ारी है
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